दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप के में मनाया जाता है। असत्य का प्रतीक रावण की मृत्यु आज हुई। सत्य क्या है? असत्य क्या है? हमें लेखा-जोखा बनाना होगा ताकि भ्रम और मिथ्या मिट जाये।
श्रीरामचरितमानस में 693 पृष्ठ पर स्पष्ट लिखा है कि बाली का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाकर रामप्रभु ने कहा - हे वानरपति सुग्रीव ! सुनो, मैं चौदह वर्ष तक गावों (बस्ती) में नहीं जाऊंगा। ग्रीष्म ऋतु बीतकर वर्षा ऋतु आगयी। अतः मैं यहाँ पास ही पर्वत पर टिका रहूँगा।
रामप्रभु के कहे हुए शब्दों का अर्थ स्पष्ट करना चाहूंगी। रामप्रभु के पास अपार बल एवं विद्याएं थीं। वे विवेकवान थे। अतः वे विद्याधरों का सहयोग नहीं लेना चाहते थे और स्वयं अकेले सीता की खोज के लिए निकले। उन्होंने कहा अब वर्षा ऋतु आ चुकी है। किसी को आवागमन नहीं करना चाहिए। सभी को अपने-अपने स्थान लौट जाना चाहिए। वर्षा ऋतु को जैन धर्म में चातुर्मास कहते हैं। अहिंसा धर्म के पालने वाले चार माह आवागमन नहीं करते ताकि जीवों की हिंसा न हो। श्री राम भी अहिंसा धर्म को पालने वाले थे। वे प्राणिमात्र के रक्षक थे। अतः चार माह तक वन में अकेले रह कर सीताजी के बारे जानकारी ली और ढूंढने का प्रयास किया। वह नहीं जान पाए कि उनके चारों ओर मायाजाल है जिसके सामने उनका बल और विवेक हार गया। श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक चार माह चातुर्मास माने जाते हैं। श्रीरामचरितमानस के 698 पृष्ठ पर फिर लिखा है कि (वर्षा ऋतु के कारण) पृथ्वी पर जो जीव भर गए थे, वे शरद ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गए जैसे सद्गुरु के मिल जाने पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं। वर्षा ऋतु बीत गयी, निर्मल शरद ऋतु आ गयी परन्तु हे तात ! सीता का कोई समाचार नहीं मिला। अतः स्पष्ट होता है कि शरद ऋतु के आजाने पर सुग्रीव अपने योद्धाओं को चारों दिशाओं में सीताजी की खोज करने भेजते हैं। पुराणों में यह वर्णन भी मिलता है कि सीताजी रावण की अशोक वाटिका में 10 माह तक रहीं थीं।
संसार रावण को श्रीराम का शत्रु मानता है जिसने सीताजी का हरण किया और स्वयं सीताजी से विवाह करना चाहता था। रावण को अभिमान था अपने बल पर कि भूमिगोचरी राम उनके द्वारा जल्दी ही मारा जायेगा। और फिर सीता उसकी हो जाएगी।
सत्य का बोध कराना चाहूंगी कि रावण श्री राम के सबसे बड़े भक्त थे। सीताजी के स्वयंवर में धनुष की टंकार लंका तक पहुंची जिससे सुनकर वे अति प्रसन्न हुए और उनकी जीव्हा पर सिर्फ राम का नाम था। एक क्षण भी ऐसा नहीं निकला होगा कि वे रामजी को भूले हों।
एक घटना का वर्णन कर चुकी हूँ कि लंकेशपति अपनी गर्भवती पटरानी श्रीप्रभा को अकेला छोड़ इंद्र के प्रपंच के कारण पाताललोक में जा गिरे, जहाँ कई वर्षों तक उन्होंने अपार वेदना भोगी। उनकी अनुपस्थिति में लंका के दिव्यास्त्र चोरी हो गए थे। श्री प्रभा के पहले दो गर्भवती पटरानियों का हरण, बाली द्वारा लंकेशपति पर कई बार प्राणघातक आक्रमण आदि घटनाओं के कारण लंकेशपति की वज्रमयी काया जर्जर हो चुकी थी, विद्याएं नष्ट हो चुकी थीं। वे युद्ध करने की स्थिति में नहीं थे, वे राम प्रभु के दर्शन के प्यासे थे। अपनी गर्भवती पटरानियों एवं उनके पुत्रों को पाने के लिए सब के तारणहार राम भगवान् के दर्शन हों और श्री राम उनके पास आएं। अतः मारीचि की योजना के अनुसार सीताजी का हरण कर बैठे।
तीन लोक के स्वामी सीताजी के सामने हाथ जोड़ नितप्रतिदिन यही कहते - पुत्री सीता ! तुम्हारा पति तुम्हे कितना चाहता है कि तुम्हारे लिए युवा राम वन-वन भटक रहा है। वह महापराक्रमी तुम्हे खोजते हुए शीघ्र ही यहाँ आएगा और वह मेरे कष्टों को दूर करेगा। तुम्हे वचन देता है यह लंकेश, शीघ्र ही तुम्हारे पति से मिलवाऊंगा। तब तक तुम यहाँ प्रसन्नचित्त एवं सुख से रहो।
यह मेरी आत्मा की आवाज है। आत्मा एवं ज्ञान प्रत्येक प्राणी की सम्पदा है। आज सभी की आत्मा में यह प्रश्न आना चाहिए कि त्रिलोकी लंकेश ने सीताजी का हरण क्यों किया ? सीता पाने की लालसा से लंकेशपति इतना विवेक खो देंगे कि अपना पूरा वंश समाप्त होते हुए देखेंगे फिर भी राम से युद्ध करेंगे ? सीताजी से भी अधिक रूपवान, गुणवान, शीलवान उनकी सहस्त्र रानियां थीं जिनके नामों का उल्लेख आगे किया जावेगा।
दशहरा (दस+हारा) लंकेशपति की मृत्यु से दस दिशाएं हार गयीं या धर्म, अच्छाई, सत्य की विजय हुई ? मंथन की आवश्यकता है।