Thursday, 28 September 2017

असत्य पर सत्य की विजय

रामायण में वर्णित प्रसंग व घटनाओं की पूर्णता किसी एक धर्म में नहीं है। बहुत-सी घटनाओं एवं प्रसंगों का वर्णन हिन्दू पुराणों में नहीं है तो बहुत-सी घटनाओं एवं प्रसंगों का वर्णन जैन धर्म के पुराणों में नहीं है। बहुत-से पात्रों के नामों तक का उल्लेख जैन धर्म में नहीं है तो बहुत-से पात्रों के नामों का उल्लेख हिन्दू पुराणों में नहीं है। जैन पुराणों एवं हिन्दू पुराणों के अलावा बौद्ध धर्म में कुछ ऐसी घटनाओं व प्रसंगों का वर्णन मिलता है जो सत्य पर प्रकाश डालता है। तात्पर्य यही निकलता है कि रहस्यों एवं सत्य को छुपाने का प्रयास किया गया है। कुछ ऐसी घटनाएं, जिनका वर्णन तीनों धर्मों में मिलता है तो निष्कर्ष अलग-अलग है। आखिर क्यों ? हम घटना एवं प्रसंगों पर शोध करें, तो निश्चित रूप से आश्चर्यचकित कर देने वाला सत्य संसार के समक्ष आएगा। 
                       रावण को मारने के लिए श्री राम को छल से वन की ओर ले जाने वाले वे कौन-कौन थे ? यह न जानने पर हम सत्य से कोसों दूर हैं। हम यह मानने के लिए बाध्य क्यों हैं कि जो लिखा है, ऐसा ही हुआ होगा ? सभी धर्मों की रामायण की घटनाओं एवं प्रसंगों को हमें कसौटी पर उतारना होगा। मरने और मारने वाले के बारे में तो वर्णन मिलता है पर तीसरी अदृश्य शक्ति जो विनाश की योजना को अंजाम देती थी उसके छल और प्रपंच हमारे सामने आने पर यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति होगी। श्री राम जिनकी आत्मा पवित्र व निर्मल थी, बल-विद्या के धारक, विवेकवान थे वे छल-प्रपंचों को नहीं जानते थे। सीता से विवाह, वनवास, वियोग  (सीता का वनवास) हुआ ।
                    अत्यंत बलशाली व्यक्ति को बल के साथ-साथ छल से समाप्त कर दिया जाता था। किसी राजा के साथ-साथ पूरा वंश समाप्त कर दिया जाता था ताकि सत्य को कहने वाला न बचे कि मेरे पिता, पुत्र, भाई, चाचा, ताऊ ने आखिर क्या किया जिसकी सजा पूरे वंश को मिली ? माता, पत्नी, पुत्री, बहन के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं होता था परिणाम स्त्रियों के शील भंग होते थे। आर्यखण्ड के हज़ारों राजाओं के साथ-साथ उनके वंश उजड़ गए। फिर धीरे-धीरे विदेशी शक्तियां आईं, उनके द्वारा राजा मारे गए। बल और शक्ति से युद्ध होते रहे। संसार की रक्षा करने वाले रक्षक कौन-कौन थे, भक्षक कौन-कौन थे, सही लेखा-जोखा पुराणों में नहीं है तो इतिहास में कैसे हो सकता है। 












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