घटनाओं की सत्यता जानने के लिए सर्वप्रथम जानना होगा कि रावण का नाम दशानंद था। कैकसी अपने पुत्र को आनंद कहती थी। रावण नाम बाली द्वारा दशानंद के ऊपर उपसर्ग (आक्रमण ही आक्रमण) करने के बाद पड़ा। कैकसी पुत्र का जन्म हुआ, बालक खेलता हुआ यक्षों द्वारा प्रदत वह हार जिसकी हज़ारों देवता रक्षा करते थे, उस हार के पास पहुँच गया और उसने हाथ से पकड़ लिया। बालक का यह पराक्रम देखकर राक्षस वंश के योद्धा परस्पर विचार करने लगे कि हमारा खोया हुआ राज्य यह पुनः ले लेगा। उस हार में लगे हुए रत्नों में बालक खिल-खिलाता हुआ सबने देखा। पिता रत्नश्रवा ने अपने पुत्र का नाम दशानंद (दस दिशाओं में आनंद फैलाने वाला) रखा। बालक आनंद अत्यंत रूपवान थे। बालक का बल, रूप देखकर माता-पिता अत्यंत हर्षित होते थे। दशानंद का जब विनाश आरम्भ हुआ तब शत्रुओं ने अपयश फैलाने के लिए रावण, दशानन, दसग्रीव, दसमुख आदि नामों से उन्हें संबोधित किया।
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