दानव, वानर, नाग देव-देवियों को अन्य स्त्री-पुरुष का रूप धारण करने की विद्द्या सिद्ध थी। नाग देव-देवियों के पास किसी को निद्रा विष देने की भी विद्द्याएँ थीं। शेषनाग अवतार लक्ष्मण की निद्रा उर्मिला को दे दी गयी थी। कालनेमि, मायावी ने लंकेशपति का रूप धारण करके बाली, हनुमान, राम एवं तीन लोक को भ्रमित किया। मारीच ने जामवंत, केसरी, अंजना का रूप धारण करके बाली और हनुमान को भ्रमित किया। स्वर्ण हिरण बनकर राम को भ्रमित किया। मंजरिका ने अंजनप्रदेश में आकर अंजना का रूप धारण किया। नाग कन्याओं ने लंकेशपति की पटरानियों का रूप धारण करके लंकेश को जो आघात पहुँचाया उससे संसार आज परिचित नहीं है। यह तो सब जानते हैं कि किसी का रूप धारण करना अर्थात छल। रूप बदलने की घटना और प्रसंग के कारण स्पष्ट हो जाने पर यथार्थता से परिचित होने पर संसार को निश्चित ही सुख की अनुभूति होगी।
सभी प्राचीन पुराणों में लिखा है कि रावण अत्यंत बलशाली थे। चौसठ रिद्धि-सिद्धियाँ थीं, असंख्यात दिव्यास्त्र थे, वानर, दानव, मानव, नाग उनको नहीं मार सकते थे। कैकसी के दूसरा पुत्र अतिशयकारी एवं अदभुत हुआ। जन्म होते ही बालक का प्रकाश संपूर्ण लंका में फ़ैल गया। जन्म से कवच-कुंडल होने के कारण रत्नश्रवा-कैकसी अपने पुत्र को भानुप्रकाश एवं भानुकर्ण नाम से संबोधित करते थे। कुबेर जानते थे कि दशानंद संकट में होंगे तो दूसरा पुत्र रक्षा करने मेँ समर्थ है। अतः नागों ने अपनी विद्या से बालक को जन्म से ही निद्रा की बीमारी से ग्रस्त कर दिया इसलिए उनका नाम कुम्भकर्ण पड़ा। किन्ही अज्ञानी पुरुषों का कहना है कि कुम्भकर्ण छः माह तक बराबर सोता रहता था और जब निद्रा से उठता तो भूख से पीड़ित होकर मोठे ताजे पूरे हाथी को एक ही बार में निगल जाता था। सत्य यह है कि भानुकर्ण का आहार बहुत पवित्र था। वे मुनियों आहार देने के पश्चात् ही भोजन करते थे और उनका चित्त सदा धर्म-ध्यान में ही लगा रहता था।
कैकसी के अति रूपवान पुत्री हुई जिसका चंद्रमा के समान वर्ण एवं मुख था। उसके रूप की उपमा चन्द्रमा से की जाती थी। कैकसी ने अपनी पुत्री का नाम चन्द्रनखा रखा। कैकसी की संतानों का दशानंद से दशानन (रावण), भानुकरण से कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा से सुपर्णणखा नाम शत्रुओं की देन थी। चौथे पुत्र विभीषण की भिन्नता का कारण अवश्य प्रकाश में आएगा, जो रूप, बल, काया में दशानंद और भानुकर्ण के आगे कुछ भी नहीं थे। यथार्थता जानने के लिए शोध आवश्यक है। "घर का भेदी लंका ढहाए इस" इस कथन की पुष्टि भी स्पष्ट होना है।
कैकसी के अति रूपवान पुत्री हुई जिसका चंद्रमा के समान वर्ण एवं मुख था। उसके रूप की उपमा चन्द्रमा से की जाती थी। कैकसी ने अपनी पुत्री का नाम चन्द्रनखा रखा। कैकसी की संतानों का दशानंद से दशानन (रावण), भानुकरण से कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा से सुपर्णणखा नाम शत्रुओं की देन थी। चौथे पुत्र विभीषण की भिन्नता का कारण अवश्य प्रकाश में आएगा, जो रूप, बल, काया में दशानंद और भानुकर्ण के आगे कुछ भी नहीं थे। यथार्थता जानने के लिए शोध आवश्यक है। "घर का भेदी लंका ढहाए इस" इस कथन की पुष्टि भी स्पष्ट होना है।
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