Sunday, 1 September 2024

धर्म और विज्ञान

 

अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर मौजूद पानी पर प्रश्न ? Facts about water that is present on other planets or moons

आज हम विज्ञान की उपलब्धियों को देखकर रोमांचित हैं। विश्व के अनेक देशों ने अपने यानों को मंगल ग्रह या अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर भेजा है, जिनसे हमें वहां की जानकारी मिली है लेकिन पूर्ण सफलता  तब होगी जब हम जीवन उत्पत्ति की दिशा में बढ़ सकें। इसके लिए उचित उपाय हैं। 

          मैंने धर्म ग्रंथ और विज्ञान की सहायता से जीवन उत्पत्ति के कुछ उपाय खोज निकाले हैं। हमारे धर्म ग्रंथों का उपयोग विश्व ने किया है, आज मैं इन धर्म ग्रंथों की शक्ति को विश्व में लाना चाहती हूँ। आज विज्ञान इतनी ऊंचाई पर है कि धर्म वहां से कोसों दूर नज़र आता है। मैंने धर्म में वर्णित तथ्यों को विज्ञानता से पूर्ण किया है। 
यानों द्वारा प्राप्त जानकारियों से हमें पता चलता है कि अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर पानी है। यदि वहां पानी है, मिटटी है और सूर्य की किरणें पहुँचती हैं तो फिर वे क्या कारण हैं कि वहां जीवंतता नहीं है। 
प्रत्यक्ष रूप से देखे गए उदाहरण के बारे में बताकर मैं अपनी बात की पुष्टि करना चाहती हूँ। 
            मैं छत पर प्रतिदिन मिटटी के बर्तन में पक्षियों के लिए नलकूप का पानी भरती थी। इस तरह दो-चार माह बाद उस पानी में १०-१५ छोटी-छोटी मछलियां और भी छोटे-छोटे जीव रेंगते हुए दिखाई दिए और साथ में बर्तन की सतह पर काई भी उत्पन्न हो गई। 
           पानी के जीवों ने वायु, पृथ्वी, वनस्पति, अग्नि और आकाश से पुद्गल प्राप्त करके अपना शरीर बना लिया। वनस्पति (काई) ने भी जल, वायु, आकाश, अग्नि (सूर्य की किरणें) और पृथ्वी से पुद्गल प्राप्त करके अपना शरीर बना लिया। 
           
अंटार्कटिका महाद्वीप में जहाँ तापमान शुन्य से ९० डिग्री नीचे है, चार माह तक वहां सूर्य की किरणें नहीं पहुँचती हैं वहां मछलियों की आयु ५०-६०००० वर्ष होती है। एक लाख वर्ष की आयु लिखूं तो ज्यादा नहीं। मछली अपना भोजन पानी-बर्फ के जीवों से प्राप्त करती है। तात्पर्य यह है कि किसी भी ग्रह पर पानी-बर्फ है तो जीवन बसाना संभव है। 
           
अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर पानी होने के प्रमाण मिलते हैं तो वायु भी होनी चाहिए। वहां पांच तत्व मौजूद हैं तो वे किस अवस्था में है, हमें यह जानने की आवश्यकता है। धर्म में वर्णित उपायों से यह सिद्ध हो सकता है।
  Today we are thrilled to see the achievements of science. Many countries of the world sent their spacecrafts on mars or other planets or moons and we can come to know the situation of there. But success would be when we can move in the direction of the origin of life. There is proper measures for this.
   I has discovered some ideas about origin of life on other planets with the help of religious texts and science. Today i want to show the power of scriptures to the world.
    Today science is at such a height that religion appears far from there. Many spacecrafts give the information about the presence of water on other planets or moons. If there is water, soil and arrive sun-rays, then what are the reasons of that there is no vitality. 
   By giving an example viewed directly, i want to confirm a thing. I put a pot filled with water of tube-well on my house's roof. This way without changing the water of pot after 2-4 months, some 10-15 small fishes and some small creatures appeared in the pot and along with this moss also arisen in the surface of the pot. Water organisms made their body by receiving the body-complex from water, air, earth, vegetation, fire (sun-rays) and sky. Moss also made their body by receiving the body complex from water, air, sky, fire (sun-rays) and earth.
    In the continent of Antarctica, where the temperature is -90 degree Celsius, for four months sun-rays do not reach there, the age of fishes in this continents is 50-60000 years. If i write a millions of years ago, not so much, Fishes get their food from water or ice organisms.
   This mean that water or ice is present on other planets or moons then there is possibilities of colonization of life.
  Five elements (water, air, land, sky, sun-rays) are present on other planets or moons but in what state? We need to know this. Measures mentioned in religious texts, will prove this.

धर्म और विज्ञान

 


रोमांचित कर देने वाला प्राचीन काल का विज्ञान व भूगोल

आज जिन युवाओं ने शासन द्वारा निर्धारित परीक्षा प्रतियोगिताओं को अपने अथक परिश्रम से उत्तीर्ण करके शासन-प्रशासन में अपनी जगह बनाई है, उन वैज्ञानिकों, अफसरों की बनाई योजनाओं को महत्व दिया जाता है। इसके विपरीत मैंने अपना मार्ग धर्म को अपनाया ।
              धर्म का तात्पर्य आज कर्मकांड से माना जाता है । जैसे - मंदिर जाना, मंदिर बनवाना, तीर्थ क्षेत्र की यात्रा करना, धार्मिक उत्सव, विधि-विधान, दान आदि को धर्म मानना संकुचित है । धर्म में विश्व है । पुराणों में वर्णित घटनाओं एवं प्रसंगों से प्राचीन काल में जो विज्ञान व भूगोल था, वह विश्व के सामने लाने का प्रयास है जिस पर शोध की आवश्यकता है । लगभग सभी वैज्ञानिक, खगोलविद्, चिंतक, विचारक, मनोवैज्ञानिक इसकी आवश्यकता को अनुभव करेंगे । हम अंतरिक्ष यानों को दूसरे ग्रहों, उपग्रहों पर जानकारी प्राप्त करने भेजते है, तो बहुत-सी जानकारी इन्हीं घटनाओं से प्राप्त हो जाएगी ।
            विश्व के सभी धर्मों में अतुल्य साहित्य के भंडार भरे हैं। मैंने जैन और हिन्दू धर्म के पुराणों का अध्ययन करके जो विज्ञान, भूगोल की जानकारी प्राप्त की है उसे सहजता से समझा जा सकता है । एक-दूसरे के धर्म को धकियाने की प्रवृत्ति को छोड़कर हमें उच्च विचारधारा को अपनाना चाहिए । समय-समय पर सृष्टि की रक्षा करने वाले महापुरुषों ने पृथ्वी पर जन्म लिया, जिनको संसार भगवान्, ईश्वर, अल्लाह, गाॅड, प्रभु कहता है। उन्होंने भेदभाव को छोड़कर अपने बल एवं बुद्धि से संसार के लिए कार्य किए । उनके कार्यों को भिन्न-भिन्न धर्म ज्ञानियों ने अपने हिसाब से समीक्षा कर लिखा, जिससे संसार यथार्थता से वंचित हो गया । इन भगवानों की जीवनगाथा किसी भी धर्म में पूर्ण नहीं है। अतः किसी भी घटना का निष्कर्ष निकालने के लिए सभी धर्मों का अध्ययन आवश्यक है । हमें किसी भी धर्म में वर्णित तथ्यों को नकारना नहीं चाहिए ।
                  मैं जिन घटनाओं का उल्लेख करूंगी, उनमें हनुमान के मुख में सूर्य, शनिदेव के द्वारा नक्षत्रों का भेदन, समुद्र मंथन, श्री कृष्ण जी की अंगुली पर पृथ्वी आदि की यथार्थता का वर्णन है ।
            जैन धर्म में इन घटनाओं का कहीं उल्लेख नहीं है । परंतु मेरा उद्देश्य दोनों धर्मों के प्रसंगों और घटनाओं के उत्कृष्ट विज्ञान से संसार को परिचित कराना है । जैन धर्म में तीर्थंकरों का वर्णन है, जो बल, विद्या, रूप, गुण में श्रीराम, हनुमान, श्रीकृष्ण के समान ही है। अंतर सिर्फ इतना ही है कि तीर्थंकरों के जीवन में कभी प्रतिकूलताऐं नहीं आईं। उनको कभी युद्ध नहीं करने पड़े । उनकी दिव्य ध्वनि से संसार के जीवों का कल्याण होता था। संसार की रक्षा करने के लिए श्रीराम, हनुमान, श्रीकृष्ण, शनिदेव को युद्ध करने पड़े । मैं इन घटनाओं में विज्ञान की मुहर लगवाऊंगी तो निश्चित ही विज्ञान मिथ्या मान सकता है।
                   हनुमान ने सूर्य को मुख में रख लिया । हनुमान अपने बल-विद्या से पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर  (अंतरिक्ष में) नहीं जा पाए थे और हिंदू धर्म में जो लिखा है वह भी सत्य है ।
          श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से सूर्य को ढंक दिया था । सुदर्शन चक्र सूर्य को नहीं ढंक सकता है फिर भी सूर्यास्त का भ्रम उत्पन्न करने में सुदर्शन चक्र की महत्ती भूमिका थी जिससे जयद्रथ सहित सभी कौरव आनंद मनाते हुए युद्ध भूमि में आ गए और फिर सूर्य के दर्शन हुए । जयद्रथ अर्जुन के बाण से मारे गए । शनि नक्षत्र भेदन करते थे और हनुमान के ग्रहों से टकराने पर ग्रह डगमगा जाते थे । ग्रहों तक शनि, हनुमान पहुंच ही नहीं पाए थे और पुराणों में वर्णित यह घटनाऐं भी पूर्ण सत्य है । इस द्वंद्व में ही प्राचीन समय का विज्ञान एवं भूगोल है । इन घटनाओं को पूर्ण करने के लिए स्वर्गलोक का वर्णन करना चाहूँगी ।
स्वर्गलोक का वर्णन- सीताजी का हरण के जानेे पर दुखी रामचंद्रजी हाथ जोड़कर बोले - हे महान पर्वतराज ! तुम सबके रक्षक हो । मुुझे मेरी सीता के बारे में बतादो । यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि यह महान पर्वतराज ही स्वर्गलोक था जो कि भारतवर्ष के उत्तर-पूरव में था । सभी लोग उत्तर-पूर्व दिशा को शुभ मानते हैं और स्वाध्याय करने इन्हीं दिशाओं की ओर मुख करके बैठते हैंं । 24 तीर्थंकरों के जन्म के पूर्व और बाद तक 15 माह का वर्णन मिलता है । धन कुबेर अपार रत्नों की वर्षा इसी महान पर्वतराज से ही करते थे । यह जन्म भूमि इन्ही पर्वतों के पास ही है । काशी, अयोध्या, श्रीवस्ती, कौशांबी, हस्तिनापुर आदि। 
                                यह समुद्र की सतह से 10-12 हज़ार मीटर ऊँचा था। इससे आधा विजयार्ध पर्वत था, जहाँ तक सिर्फ वानरवंशी ही जा सकते थे। स्वर्गलोक के अधिपति संसार में सुख, ज्ञान व आनंद देते थे।  वे अपने बल से सृष्टि का संतुलन बनाये रखते थे। जिस स्वर्ग को विज्ञान नहीं मानता, यही स्वर्ग ही सृष्टि का संतुलन रखने वाला था। इसके अतिशय और अदभुतता का वर्णन करुँगी तो कई पुराणों की रचना हो जाएगी, इसीलिए यहाँ थोड़ा-सा वर्णन इस प्रकार है। 
                            लगभग 12 हज़ार मीटर ऊँचा आकाश को छूता हुआ यह पर्वतराज, जिसके पांच परकोटे थे। पहला धूलिसाल नामक कोट था, जो 5000 रत्नों से निर्मित था, दूसरा कोट जो तपे हुए स्वर्ण के समान लाल रंग का था, तीसरा कोट स्वर्णमयी पीत वर्ण का, चौथा कोट स्फटिक मणि के समान व चंद्रमणि के समान स्वेत वर्ण का था। सोने, चांदी, रत्नों की कई हज़ार पेडियां थी। 
                            निर्मल जल से पूरित नदियां थीं, जिसमें एक-एक हज़ार पंखुड़ियों वाले स्वर्णमयी वर्ण वाले कमल के फूल खिलते थे, उपवन थे, जिसमें सबसे पहले अशोक वृक्ष को देखकर संसारी जीवों के समस्त शोक दूर हो जाते थे।  चम्पक वृक्ष, जिसकी ज्योति दीपक के समान जगमगाती रहती थी, इसीलिए इसका नाम चम्पक पड़ा। चौथे परकोटे में कल्पवृक्षों की रचना है, कल्पवृक्षों के नाम गृहांग, भजनांग, आभूषणांग, वस्त्रांग, भोजनांग, मयांग, ज्योतिरांग, मालांग, वादियांग तथा दीपांग इस प्रकार के कल्पवृक्ष थे। प्रत्येक परकोटे में चार-चार द्वार थे, उस प्रत्येक द्वार के ऊपर सौ-सौ रत्नमयी तोरण थे, द्वार पर अनेक रत्नमय घंटे, मोतियों की मालाएं एवं कल्पवृक्षों के पुष्पों की मालाएं लटकी रहती थीं। रत्न एवं निधियां थीं। जैन धर्म में 14 रत्न एवं नौ निधियों का वर्णन मिलता है तो हिन्दू पुराणों में भी रत्न एवं निधियों का वर्णन मिलता है।  मेरा मानना है कि यह सब इसी पर्वतराज के सबसे ऊपर पांचवे परकोटे में थी एवं नीलमणि के समान गोलाकार एक शिला थी, जिसके ऊपर रत्न का विशाल सिंहासन था, इस सिंहासन पर तीनों लोक के स्वामी अथवा स्वर्गलोक के अधिपति विराजमान होते थे। इस सिंहासन के ऊपर स्वर्णमयी तीन छत्र थे। सुदर्शन चक्र, गदा, दंड, ब्रम्हास्त्र, अग्निबाण, मेघबाण, अंधकारबाण, प्रबोधबाण आदि दिव्यास्त्र इस स्वर्गलोक के अधिपति के अधीन थे। 
                               इस स्वर्गलोक में कभी अंधकार नहीं होता था, इसका एक दिव्य सूर्य था, जो इसकी परिक्रमा लगाता था। 
                           
 
  मारुती सुमेरु में रहते थे, जो समुद्र के सतह से 3-4 हज़ार मीटर की ऊंचाई पर था। देवों ने मारुती को कार्यों में इतना उलझाया कि मारुती को असहनीय भूख जागृत हुई। देवों को ज्ञात था कि मारुती को भूख भी अधिक लगती है।  अतः भूख से व्याकुल अबोध बालक से कहा गया कि इस दिव्य फल को खाने से जीवन की क्षुधा समाप्त हो जाएगी।  बालक पर्वतराज पहुंचे। जिस प्रकार हनुमान को अणिमा ऋद्धि, महिमा ऋद्धि प्राप्त थी, जिसमें अणिमा ऋद्धि से वह अपने शरीर को परमाणु के समान छोटा बना लेते थे तथा महिमा ऋद्धि जिससे वह अपने शरीर को पर्वत के समान बड़ा बना लेते हैं। उसी प्रकार स्वर्गलोक का यह दिव्य सूर्य विद्याधारक के अनुसार छोटा-बड़ा हो जाता था। 
                       यहाँ दार्शनिक बनकर यह भाव मेरे अंतःकरण से उमड़ रहा है कि मानो दिव्य सूर्य ने अपने भगवान (हनुमान) को सम्मुख पाकर अपने को छोटा बना लिया, जिससे वह अपने भगवान् का स्पर्श प्राप्त कर सके और सूर्य देव अपने भगवान के मुख में विराजमान हो गए। बालक मारुती सूर्य के ताप को सहन नहीं कर सके और पृथ्वी पर गिरने लगे। इंद्र ने वज्र से प्रहार किया, जिससे पृथ्वी पर गिरते हुए मारुती की दिशा बदल दी गयी और मारुती किष्कुपुर राज्य में जा गिरे। इस तरह दिव्य सूर्य सूर्यरज विद्याधर को प्राप्त हुआ और संसार को प्रकाश देने वाले सूर्य देव कहलाये। 
                     इंद्र  की दुष्टता के उदाहरण सहस्त्र हैं।  श्री कृष्ण, शनिदेव ने इंद्र को कई बार दण्डित किया और उनके घमंड को चूर-चूर किया। 
                     स्वर्गलोक की दिव्यता के प्रतीक चिन्ह श्री राम, हनुमान, श्री कृष्ण और तीर्थंकरों शरीर पर मिलते हैं। तीर्थंकरों के शरीर पर पद्म, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, कलश, दंड, स्वस्तिक, चक्र, ॐ, ज्योति आदि सहस्त्र शुभ चिन्ह होते थे। रामचन्द्रजी के वक्ष पर पद्म का चिन्ह एवं इतने ही चिन्ह उनके पैरों में थे। देव-दानव उनके पैर छूने के लिए लालायित रहते थे। हनुमान के पैर में चक्र सहित कई चिन्ह थे। श्री कृष्ण जी के पैर में पद्म का चिन्ह था। यह चिन्ह उन्हीं के होते थे, जिनका सम्बन्ध स्वर्ग से होता था। 

धर्म और विज्ञान

 

मंगल ग्रह पर अभी तक प्राप्त जानकारी Information yet on Mars planet

अभी तक मंगल ग्रह पर सात अंतरिक्षयान पहुंचाए जा चुके हैं, जिनमें से पांच मंगल ग्रह की कक्षा में - २००१ मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस, मार्स रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर, मावेन, मार्स ऑर्बिटर मिशन एवं दो मंगल ग्रह की सतह पर - मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर अपॉरचुनिटी और मार्स साइंस लेबोरेटरी क्यूरोसिटी। 


  • मार्स २००७ में मार्स रोवर स्प्रिट ने मंगल ग्रह की सतह पर कुछ रासायनिक यौगिकों के सैंपल एकत्रित किये थे, जिसमें पानी के अणु पाए गए थे। 
  •  जुलाई २००८ में फोएनिक्स लैंडर ने मंगल ग्रह की सतह पर खोदी गयी मिटटी के सैंपल में पानी की बर्फ पायी। 
  • मंगल ग्रह एक लौकिक ग्रह है, जिस पर कई तरह के खनिज लवण और धातुएँ पायी गयी हैं जैसे - सिलिकॉन, ऑक्सीजन इत्यादि।                         मंगल ग्रह के वातावरण में ऑक्सीजन और पानी की थोड़ी मात्रा पाए जाने के साथ कार्बन डाई ऑक्साइड, आर्गन और नाइट्रोजन भी है।  
  • फ़ीनिक्स लैंडर ने मंगल ग्रह की मिटटी के बारे  बताया की वहां की मिटटी क्षारीय है, जिसमें कुछ तत्व पाए गए हैं जैसे - मैग्नीशियम, सोडियम, पोटैशियम और क्लोरीन जो की पृथ्वी के बगीचों में पाए जाते हैं। ये तत्व पौधों के बढ़ने के लिए आवश्यक होते हैं। 
  • मंगल ग्रह के वातावरण में मीथेन भी पायी जा चुकी है, जिसके उत्पन्न होने के कई कारण भी बताये गए हैं, लेकिन १९ सितंबर २०१३ में क्यूरोसिटी की रिपोर्ट के अनुसार नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि अब मंगल ग्रह की वातावरणीय मीथेन उतनी नहीं है, जितनी पहले मापी गयी।                                                                                             इस पर निष्कर्ष निकला गया कि मंगल ग्रह पर पाए जाने वाले मीथेनोजेनिक बैक्टीरियाओं की सक्रियता कम हो गयी है।  
  • १९७० में विकिंग ने मंगल ग्रह की सतह पर सूक्ष्मजीवों के जीवन के जैवीय चिह्नों के बारे में पता लगाया। उसके बाद २०१४ क्यूरोसिटी रोवर से पहले मंगल ग्रह पर उतरने वाले यानों में से किसी ने जैवीय अणु या जैवीय चिह्न नहीं पाए। 
  • २००३ में वातावरण में मीथेन की खोज पर कुछ वैज्ञानिकों ने मेथेनोजेंस बेक्टेरियाओं को बढ़ाने के लिए इनविट्रो प्रयोग किये, जहाँ मेथेनोजेंस बेक्टेरियाओं की चारों उपभेद परक्लोरेट साल्ट की उपस्थिति में भी उत्पन्न हुईं। 
  • अरकंसास यूनिवर्सिटी के शोध में बताया गया कि मंगल ग्रह के कम दबाव वाले वातावरण में भी कुछ मेथेनोजेंस जीवित रह सकते हैं। जो हैं -                                                                                        Methanothermobacter wolfeii                                              Methanosarcina barkeri                                                      Methanobacterrium formicium and                                      Methanococcus maripaludis                                                           यानों ने मंगल ग्रह पर पानी, ऑक्सीजन, मीथेन, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, खनिज लवण, तत्व, धातुओं, सूक्ष्मजीवों के होने की पुष्टि की है।
    साथ में इन सभी के अस्थायी होने के प्रमाण भी यानों से प्राप्त जानकारी में मिलते हैं।         मैंने पांच तत्व या पांच प्रकार के स्थावर जीवों का वर्णन लिखा है, इन जीवों के बिना जीवन असंभव है।        अधिक ऊंचाई पर पहुंच जाने पर एक छोटी-सी प्रक्रिया पर नहीं पहुंचा विज्ञान। प्राचीन धर्म ग्रंथों में दिए हुए तथ्यों पर ध्यान दिया जाए तो मंगल या अन्य ग्रहों या चंद्रमाओं पर जीवन उत्पत्ति के सन्दर्भ में निष्कर्ष खोजे जा सकते हैं क्योंकि कुछ जानकारी पूर्णरूप से सत्य होती है तो पूरी परिस्थिति सामने आ जाती है। आवश्यकता चिंतवन की है तब यान जीवन बसाने की दिशा में जाएगा न कि जानकारी हासिल करने।       
                                                                                                Mars is host to seven functioning spacecrafts. Five in orbit - 2001 Mars Odyssey, Mars Express, Mars Reconnaissance Orbiter, Maven, Mars Orbiter Mission and two on the surface - Mars Exploration Rover Opportunity and the Mars Science Laboratory Curiosity. 
  • Mars Rover Spirit sampled chemical compounds containing water molecules in March 2007.
  • The Phoenix Lander directly sampled water ice in shallow Martian soil on July 31, 2008.
  • Mars is a terrestrial planet that contains of minerals containing silicon, oxygen, metals and other elements typically make up rock.
  • The Phoenix Lander returned data showing Martian soil to be slightly alkaline and containing elements such as magnesium, sodium, potassium and chlorine. These nutrients are found in gardens on Earth and they are necessary for growth of plants.
  • Methane has been detected in martian atmosphere with a mole fraction of about 30 ppb. It is estimated that mars must produce 270 tonnes/year of methane. On September 19, 2013 NASA scientists from further measurements by Curiosity reported no detection of atmospheric methane and as a result conclude that the probabilities of current methanogenic microbial activity on mars is reduced.
  • The 1970s Viking program placed two indentical landers on the surface of Mars and tasked to look for biosignatures of microbial life on the surface. Of the four experiments performed  by each Viking Lander. Only the 'Labeled Release' (LR) experiment gave a possitive result for Metabolism, while the other three did not detect organic compounds.                                                                      Further, no mars lander mission has found traces of biomolecules or biosignatures until the Curiosity Rover in 2014, found organics.
  • Since the 2003 discovery of methane in atmosphere, some scientists have been designing models and invitro experiments testing growth of methanogenic bacteria on simulated Martian soil, where all four methanogens strains tested produced substantial levels of methane, even in the presence of 1.0 wt% perchlorate salt.
  • Research at the University of Arkansas presented in June 2015 suggested that some methanogens could survive on Mars's low pressure.                                                              Methanothermobacter wolfeii                                              Methanosarcina barkeri                                                      Methanobacterrium formicicum and                                    Methancoccus maripaludis                                                                           Spacecrafts confirmed to be present of water, oxygen, methane, nitrogen, carbon dioxide, minerals, elements, metals, microorganisms on mars. With this these evidences are found temperory in the information of spacecrafts.                                                                                  i described about five elements or five types of real life organisms, life is impossible without these organisms. Science has achieve the maximum altitude but did not reach the small exercise about this. If facts of ancient scriptures will be focused then conclusion can be found in the context of the origin of life on mars or other planets or moons because some information is completely true then there is whole situation. There is need to contemplation then spacecrafts will be in the direction of creating life, not to gain information.                               

धर्म और विज्ञान


अन्य ग्रह और चंद्रमाओं पर जीवन उत्पत्ति में प्राचीन ग्रंथों का महत्व Importance of ancient texts in the origin of life on other planets or moons
           मंगल ग्रह पर कभी जीवन था और आगे भी जीवन हो सकता है आज विश्व के वैज्ञानिक अंतरिक्ष शोध में लगे हुए हैं कि मंगल ग्रह पर जीवन बसाया जा सके इसके लिए यान भेजे जा रहे हैं प्रयास निश्चित सफल होंगे क्योंकि हज़ारों सालों पहले मंगल ग्रह पर भी जीवन था इसके लिए हमें उन बलशाली देवों के बारे में जानना होगा जिनका वर्णन प्राचीन धर्म ग्रंथों में मिलता है                                  
       शनि देव नक्षत्रों का भेदन करने वाले थे बालक मारुती ने सूर्य को मुख में रख लिया था समस्त पृथ्वी और ब्रह्माण्ड में इतनी सर्दी और गर्मी है जिनकी जानकारी हमें तारे, ग्रहों या चंद्रमाओं पर यानों से मिलती है ऐसे स्थानों पर मनुष्य ठहर नहीं सकता, ऐसे स्थानों पर बालक मारुती पहुँच जाया करते थे और उनके शरीर को ज़रा भी क्षति नहीं पहुँचती थी
                इन उदाहरणों का वर्णन इसीलिए दे रही हूँ क्योंकि बड़ी शक्तियों को नष्ट करने के लिए बड़ी शक्ति सामने बनती है आज विज्ञान ने उन सभी शक्तियों को अर्जित कर लिया है जो देवों के पास हुआ करती थी। विश्व के पास ऐसे विनाशकारी हथियार हैं कि यदि इन हथियारों का उपयोग कर लिया जाये तो समस्त मानव जाति का अंत  सकता है 
                    जब दो शक्तियां टकरातीं है तो पृथ्वी क्या ब्रह्माण्ड को भी क्षति होती है रामायण, महाभारत युद्ध में राम, हनुमान, कृष्णा जिनके बल, बुद्धि से संसार की रक्षा हुई अन्यथा पृथ्वी भी अन्य ग्रहों के समान हो जाती संभवतः मंगल ग्रह पर बड़ी शक्तियों के टकराने से जीवन समाप्त हुआ हो वैज्ञानिकों के प्रयासों से निश्चित ही अन्य ग्रह भी जीवंत हो जाएंगे इन प्रयासों के साथ साथ हमें प्राचीन ग्रंथों में लिखे हुए रहस्यों को भी समझना होगा।  
There was ever life on mars planet and can be life even further. Today all scientists of whole world are engaged in space research so that life on mars can be inhibited. The crafts are being sent for this. Efforts will succeed certainly because thousands of years ago there was life on mars. For this we need to know those powerful gods described in ancient religious texts. 
              God Shani was to penetrate the stars. God Maruti when he was child, kept to the sun in his mouth. We found the information about stars, planets or moons and even on earth that there is so much winter and summer, man can not stay in such places. At such places Maruti used to access and there was no harm or damage to their body. 
                 I am illustrating this because biggest powers are formed to destroy the big powers. Today science has acquired all the powers that gods used to had. The powerful countries of the world have such devastating weapons that if these weapons would be used, may be the end of all mankind. When two big powers collides, not only to earth, universe can be damaged too. In the war of Ramayan and Mahabharat Ram, Hanuman and Krishna whose strength and wisdom had to protect the world otherwise our earth had to be like other planets. Possibly life have ended up on mars by colliding of the big powers. Scientists efforts, other planets will be alive certainly. Along with these efforts, we have to understand the mysteries that are written in ancient texts.

Friday, 29 September 2017

दशहरा : सत्य का बोध

दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप के में मनाया जाता है। असत्य का प्रतीक रावण की मृत्यु आज हुई। सत्य क्या है? असत्य क्या है? हमें लेखा-जोखा बनाना होगा ताकि भ्रम और मिथ्या मिट जाये। 
                श्रीरामचरितमानस में 693 पृष्ठ पर स्पष्ट लिखा है कि बाली का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाकर रामप्रभु ने कहा - हे वानरपति सुग्रीव ! सुनो, मैं चौदह वर्ष तक गावों (बस्ती) में नहीं जाऊंगा। ग्रीष्म ऋतु बीतकर वर्षा ऋतु आगयी। अतः मैं यहाँ पास ही पर्वत पर टिका रहूँगा। 
                रामप्रभु के कहे हुए शब्दों का अर्थ स्पष्ट करना चाहूंगी। रामप्रभु के पास अपार बल एवं विद्याएं थीं। वे विवेकवान थे। अतः वे विद्याधरों का सहयोग नहीं लेना चाहते थे और स्वयं अकेले सीता की खोज के लिए निकले। उन्होंने कहा अब वर्षा ऋतु आ चुकी है। किसी को आवागमन नहीं करना चाहिए। सभी को अपने-अपने स्थान लौट जाना चाहिए। वर्षा ऋतु को जैन धर्म में चातुर्मास कहते हैं। अहिंसा धर्म के पालने वाले चार माह आवागमन नहीं करते ताकि जीवों की हिंसा न हो। श्री राम भी अहिंसा धर्म को पालने वाले थे। वे प्राणिमात्र के रक्षक थे। अतः चार माह तक वन में अकेले रह कर सीताजी के बारे जानकारी ली और ढूंढने का प्रयास किया। वह नहीं जान पाए कि उनके चारों ओर मायाजाल है जिसके सामने उनका बल और विवेक हार गया। श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक चार माह चातुर्मास माने जाते हैं। श्रीरामचरितमानस के 698 पृष्ठ पर फिर लिखा है कि (वर्षा ऋतु के कारण) पृथ्वी पर जो जीव भर गए थे, वे शरद ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गए जैसे सद्गुरु के मिल जाने पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं। वर्षा ऋतु बीत गयी, निर्मल शरद ऋतु आ गयी परन्तु हे तात ! सीता का कोई समाचार नहीं मिला। अतः स्पष्ट होता है कि शरद ऋतु के आजाने पर सुग्रीव अपने योद्धाओं को चारों दिशाओं में सीताजी की खोज करने भेजते हैं। पुराणों में यह वर्णन भी मिलता है कि सीताजी रावण की अशोक वाटिका में 10 माह तक रहीं थीं। 
                      संसार रावण को श्रीराम का शत्रु मानता है जिसने सीताजी का हरण किया और स्वयं सीताजी से विवाह करना चाहता था। रावण को अभिमान था अपने बल पर कि भूमिगोचरी राम उनके द्वारा जल्दी ही मारा जायेगा। और फिर सीता उसकी हो जाएगी। 
                      सत्य का बोध कराना चाहूंगी कि रावण श्री राम के सबसे बड़े भक्त थे। सीताजी के स्वयंवर में धनुष की टंकार लंका तक पहुंची जिससे सुनकर वे अति प्रसन्न हुए और उनकी जीव्हा पर सिर्फ राम का नाम था। एक क्षण भी ऐसा नहीं निकला होगा कि वे रामजी को भूले हों। 
                  एक घटना का वर्णन कर चुकी हूँ कि लंकेशपति अपनी गर्भवती पटरानी श्रीप्रभा को अकेला छोड़ इंद्र के प्रपंच के कारण पाताललोक में जा गिरे, जहाँ कई वर्षों तक उन्होंने अपार वेदना भोगी। उनकी अनुपस्थिति में लंका के दिव्यास्त्र चोरी हो गए थे। श्री प्रभा के पहले दो गर्भवती पटरानियों का हरण, बाली द्वारा लंकेशपति पर कई बार  प्राणघातक आक्रमण आदि घटनाओं के कारण लंकेशपति की वज्रमयी काया जर्जर हो चुकी थी, विद्याएं नष्ट हो चुकी थीं। वे युद्ध करने की स्थिति में नहीं थे, वे राम प्रभु के दर्शन के प्यासे थे। अपनी गर्भवती पटरानियों एवं उनके पुत्रों को पाने के लिए सब के तारणहार राम भगवान् के दर्शन हों और श्री राम उनके पास आएं। अतः मारीचि की योजना के अनुसार सीताजी का हरण कर बैठे। 
                  तीन लोक के स्वामी सीताजी के सामने हाथ जोड़ नितप्रतिदिन यही कहते - पुत्री सीता ! तुम्हारा पति तुम्हे कितना चाहता है कि तुम्हारे लिए युवा राम वन-वन भटक रहा है। वह महापराक्रमी तुम्हे खोजते हुए शीघ्र ही यहाँ आएगा और वह मेरे कष्टों को दूर करेगा। तुम्हे वचन देता है यह लंकेश, शीघ्र ही तुम्हारे पति से मिलवाऊंगा। तब तक तुम यहाँ प्रसन्नचित्त एवं सुख से रहो। 
                     यह मेरी आत्मा की आवाज है। आत्मा एवं ज्ञान प्रत्येक प्राणी की सम्पदा है। आज सभी की आत्मा में यह प्रश्न आना चाहिए कि त्रिलोकी लंकेश ने सीताजी का हरण क्यों किया ? सीता पाने की लालसा से लंकेशपति इतना विवेक खो देंगे कि अपना पूरा वंश समाप्त होते हुए देखेंगे फिर भी राम से युद्ध करेंगे ? सीताजी से भी अधिक रूपवान, गुणवान, शीलवान उनकी सहस्त्र रानियां थीं जिनके नामों का उल्लेख आगे किया जावेगा। 
                    दशहरा (दस+हारा) लंकेशपति की मृत्यु से दस दिशाएं हार गयीं या धर्म, अच्छाई, सत्य की विजय हुई ? मंथन की आवश्यकता है। 




















Thursday, 28 September 2017

असत्य पर सत्य की विजय

रामायण में वर्णित प्रसंग व घटनाओं की पूर्णता किसी एक धर्म में नहीं है। बहुत-सी घटनाओं एवं प्रसंगों का वर्णन हिन्दू पुराणों में नहीं है तो बहुत-सी घटनाओं एवं प्रसंगों का वर्णन जैन धर्म के पुराणों में नहीं है। बहुत-से पात्रों के नामों तक का उल्लेख जैन धर्म में नहीं है तो बहुत-से पात्रों के नामों का उल्लेख हिन्दू पुराणों में नहीं है। जैन पुराणों एवं हिन्दू पुराणों के अलावा बौद्ध धर्म में कुछ ऐसी घटनाओं व प्रसंगों का वर्णन मिलता है जो सत्य पर प्रकाश डालता है। तात्पर्य यही निकलता है कि रहस्यों एवं सत्य को छुपाने का प्रयास किया गया है। कुछ ऐसी घटनाएं, जिनका वर्णन तीनों धर्मों में मिलता है तो निष्कर्ष अलग-अलग है। आखिर क्यों ? हम घटना एवं प्रसंगों पर शोध करें, तो निश्चित रूप से आश्चर्यचकित कर देने वाला सत्य संसार के समक्ष आएगा। 
                       रावण को मारने के लिए श्री राम को छल से वन की ओर ले जाने वाले वे कौन-कौन थे ? यह न जानने पर हम सत्य से कोसों दूर हैं। हम यह मानने के लिए बाध्य क्यों हैं कि जो लिखा है, ऐसा ही हुआ होगा ? सभी धर्मों की रामायण की घटनाओं एवं प्रसंगों को हमें कसौटी पर उतारना होगा। मरने और मारने वाले के बारे में तो वर्णन मिलता है पर तीसरी अदृश्य शक्ति जो विनाश की योजना को अंजाम देती थी उसके छल और प्रपंच हमारे सामने आने पर यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति होगी। श्री राम जिनकी आत्मा पवित्र व निर्मल थी, बल-विद्या के धारक, विवेकवान थे वे छल-प्रपंचों को नहीं जानते थे। सीता से विवाह, वनवास, वियोग  (सीता का वनवास) हुआ ।
                    अत्यंत बलशाली व्यक्ति को बल के साथ-साथ छल से समाप्त कर दिया जाता था। किसी राजा के साथ-साथ पूरा वंश समाप्त कर दिया जाता था ताकि सत्य को कहने वाला न बचे कि मेरे पिता, पुत्र, भाई, चाचा, ताऊ ने आखिर क्या किया जिसकी सजा पूरे वंश को मिली ? माता, पत्नी, पुत्री, बहन के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं होता था परिणाम स्त्रियों के शील भंग होते थे। आर्यखण्ड के हज़ारों राजाओं के साथ-साथ उनके वंश उजड़ गए। फिर धीरे-धीरे विदेशी शक्तियां आईं, उनके द्वारा राजा मारे गए। बल और शक्ति से युद्ध होते रहे। संसार की रक्षा करने वाले रक्षक कौन-कौन थे, भक्षक कौन-कौन थे, सही लेखा-जोखा पुराणों में नहीं है तो इतिहास में कैसे हो सकता है। 












Tuesday, 3 January 2017

इंद्र का प्रपंच

इंद्र क्रूर थे, इसके तथ्य प्रस्तुत हैं। लंकेशपति तीन लोक, जैन पदमपुराण में तीन खण्डों का वर्णन है - आर्य खंड, विद्द्याधर खंड (देवलोक), मलेच्छ खंड को जीतकर लंका में प्रवेश करते हैं। वानरवंश के शिरोमणि माहेंद्रसेन चक्रवर्ती रावण का आगमन सुन सभास्थल में पहुंचे और देवों को बुलाने के लिए शीघ्र रणभेरी बजवाई फिर राक्षसवंशीय, वानरवंशीय एवं अन्य देवगणों के बीच भीषण युद्ध हुआ। रावण ने माहेन्द्र को बंदी बना लिया। माहेन्द्र के पिता राजा सहस्त्रार मंत्रियों के साथ बड़ी नम्रता से लंका में रावण के पास पहुँचे और रावण ने भी मिष्ट वचनों से उदारतापूर्वक उसका सम्मान किया। सहस्त्रार रावण से कहने लगे - आपने इंद्र को जीत लिया अब उसे मेरे कहने से छोड़ दीजिये। महाराज हम आपके आधीन हैं, आप जैसा कहेंगे हम वैसा करेंगे। यह सुनकर रावण ने संतुष्ट हो उन सभी को कारागार से मुक्त कर दिया तथा भोजनादि कराकर इंद्र से कहा कि आज से तुम मेरे चौथे भाई हो। तुम यहीं लंका में सुख से रहो और राज्य का संचालन करो। सभी इंद्र जानते थे कि रावण के साथ युद्ध करने पर लाभ होता है। परोपकारी लंकेश क्षमा कर देते हैं और बदले में अधिक स्नेह करते हैं। लंकेश को उसकी  ही अच्छाई से कैसे हराया जाये, यह बात सभी इंद्र भली-भाँति जानते थे। 
                 माहेन्द्र ने रथनूपुर में धार्मिक उत्सव मनाया और लंकेशपति को आमंत्रित किया। रावण धार्मिक उत्सव में आनंद के साथ आते और उत्सव मानते थे। अपने चौथे भाई का आमंत्रण स्वीकार कर वे रथनूपुर पहुंचे। उत्सव में बाली की बहन श्रीप्रभा नीलांजना बनकर नृत्य कर रही थी। लंकेशपति नीलांजना पर मोहित हो गए।  नीलांजना का ऐसा रूप मानो संसार की सभी कन्याओं का रूप उनमें समां गया हो। नृत्य करती हुई नीलांजना (श्रीप्रभा) के पैर ऐसे थिरक रहे थे मानो बिजली चमक रही हो। स्वर्णमयी काया और हिरण के समान चंचल नेत्रों की दृष्टि लंकेशपति पर पड़ती और शीघ्र काले घने बादलों के समान केशों में नयन छुप जाते। लंकेश्पति की व्याकुलता इंद्र ने देखली। उसने नृत्य करती हुई नीलांजना को अदृश्य कर दूसरी उसी रूप की नीलांजना को नृत्य के लिए भेजा, परंतु लंकेशपति इंद्र की माया को समझ गए कि यह नीलांजना दूसरी है। इंद्र अपनी योजना पर मुस्कराए और लंकेशपति से हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोले - लंकेश ! कृपया कर मेरी पुत्री से विवाह कर लीजिये। लंकेश ने उसी उत्सव में श्रीप्रभा (नीलांजना) से विवाह कर लिया।                  इधर अंजनप्रदेश में मारुती का जन्मदिवस मनाया जा रहा था। उसी समय केसरी पर हमला इस प्रकार करवाया गया कि बाली सोचे कि यह आक्रमण रावण के द्वारा हुआ है। यह घटना बहुत बड़ी है, जिसका वर्णन किया जायेगा। बाली को ज्ञात हुआ कि रावण धार्मिक उत्सव मना रहा है। अतः क्रोधी बाली आकाशगमन करते हुए इंद्रलोक गए। इंद्र ने अपनी माया से एक देवी को आकाश में भेज। वह देवी बोली - ठहरिये किष्किंधा नरेश ! मैं तुम्हे रथनूपुर की सीमा में प्रवेश नहीं करने दूंगी, ऐसा लंकेशपति का आदेश है क्योंकि तुम्हारी बहन श्रीप्रभा से लंकेश ने विवाह कर लिया है। इस आनंद में तुम्हे आने की अनुमति नहीं है। उस देवी ने जानबूझकर बाली का क्रोध बढ़ाया। बाली ने कहा - दूर हट रावण की दूती ! तू मुझे नहीं रोक पायेगी। इधर इंद्र लंकेश से कहते हैं - लंकेशपति ! बाली को ज्ञात हो गया है कि आपने उसकी अनुपस्थिति में उसकी बहन से विवाह कर लिया है। अति क्रोधित बाली इधर ही आ रहा है। कृपयाकर आप बाहर चलकर उसे रोकिये अन्यथा उत्सव में विघ्न आएगा, जो उचित नहीं होगा। लंकेशपति बाली को समझाने हेतु बाहर आये व नम्रतापूर्वक बोले - ठहरो बाली ! मैं तुम्हे सब कुछ बताता हूँ। क्रोध में अंधे बाली को कुछ सुनाई नहीं दिया। इंद्र का मायावी वज्र बाली के सिर पर लगा। बाली ने सोचा इंद्र तो मेरे पिता हैं अवश्य ही यह आक्रमण रावण का है। फिर बाली ने भी लंकेश पर तेज़ी से आक्रमण किया। माहेन्द्र ने लंकेश को समझाया - लंकेशपति ! आप इस चट्टान के पीछे छुप जाइए, अभी युद्ध करना ठीक नहीं है। बाली को मैं समझाऊंगा। लंकेशपति चट्टान के पीछे छुपे और चट्टान सहित हज़ारो मीटर नीचे पाताललोक में जा गिरे। 
                 रामचरितमानस में अंगद और रावण का संवाद लिखा है, उसके अंश जिसमें अंगद रावण पर व्यग्य करते हुए कहते हैं - एक रावण तो बाली को जीतने पाताल में गया था तब बच्चों ने उसे घुड़साल में बाँध रख था।  बालक खेलते थे और जा-जाकर उसे मारते थे। बाली को दया आयी तब उन्होंने उसे छुड़ा दिया। फिर एक रावण को सहस्त्रबाहु ने देखा और उसने उसे दौड़ाकर एक विशेष प्रकार के विचित्र जंतु के तरह पकड़ लिया। तमाशे के लिए वह उसे घर ले आया। तब पुलत्स्य मुनि ने जाकर उसे छुड़ाया। 
               रावण को बल से कोई नहीं हरा सकता था, जिसके पास बल होता है, वह छल नहीं जानता। अतः इंद्र जिसको चौथा भाई कहकर लंकेशपति स्नेह एवं सम्मान देते थे, वे इंद्र की मायाजाल में फंसकर पाताललोक में जा गिरे और कई सालों तक पड़े रहे जहाँ उन्होंने अपार यातना भोगी। 
                    लंका में हाहाकार मच गया। सब इंद्रों को जीतने वाले इंद्रजीत हाथ जोड़कर सभी इंद्रों से प्रार्थना कर रहे थे कि कोई मेरे पिता का पता बता दे, मैं उसे लंका दे दूंगा। ऐसा ही भानुकर्ण अपने भाई के लिए दर-दर भटक रहे थे। वे अपने भाई का पता जानने के लिए किसी के पैर भी छूने के लिए तैयार थे। बाली भ्रमित हुए और श्रीप्रभा जीवन में फिर अपने पति से नहीं मिल सकी। श्रीप्रभा से उत्पन्न महावीर से परिचित कराउंगी। संसार में उस जैसा बल, रूप, गुण किसी में नहीं ऐसा वीर पुत्र जो लंकेशपति का था जो जीवित बच गया और अपने पिता के विनाश का चुन-चुनकर बदला लिया। श्रीप्रभा लंकेश की अंतिम पटरानी थी। इसके पहले भी लंकेश की तीन-चार गर्भवती पटरानियों का हरण हुआ जो संसार नहीं जानता। 
                  इस प्रकार इंद्र के प्रपंच से लंकेशपति का विनाश हो रहा था और माहेन्द्र ने देवराज इंद्र का पद प्राप्त कर लिया। कई वर्षों बाद माहेन्द्र ने लंकेशपति का पता बताने के लिए कैकसी के सामने शर्त रखी। हमें जानना होगा कि वह शर्त क्या थी ?